Neelkanth mahadev: श्रावण मास यानी शिव भक्ति का सबसे पवित्र महीना। इस महीने की शुरुआत होते ही मंदिरों में घंटियां गूंजने लगती हैं, कांवड़ियों की टोली हर हर महादेव के जयघोष के साथ निकलती है, और शिवालयों में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर सावन में ही शिवजी की पूजा को इतना महत्व क्यों दिया जाता है?
इस सवाल का जवाब छिपा है एक प्राचीन पौराणिक कथा में, जिसे जानना हर भक्त के लिए जरूरी है।
Neelkanth Mahadev : समुद्र मंथन और हलाहल विष की कथा
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र बताते हैं कि पुराणों के अनुसार, एक समय देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। इस मंथन से 14 अनमोल रत्न निकले, लेकिन उन्हीं के साथ एक भयंकर विष ‘हलाहल’ भी निकला।
यह विष इतना प्रचंड और घातक था कि उसकी तपिश से पूरा ब्रह्मांड व्याकुल हो उठा। जब देवता और असुर इस संकट से घबरा गए, तो वे सभी भगवान शिव की शरण में चले गए।

भगवान शिव ने करुणा दिखाते हुए उस विष को पी लिया, ताकि संसार की रक्षा हो सके। लेकिन उन्होंने इसे निगला नहीं — बल्कि अपने कंठ में ही रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया। तभी से वे ‘नीलकंठ’ कहलाए।
क्यों चढ़ाते हैं सावन में जल?
हलाहल विष के असर से भगवान शिव के शरीर में तेज गर्मी फैल गई। तब सभी देवताओं ने मिलकर गंगाजल से उनका अभिषेक किया ताकि विष का प्रभाव शांत हो सके।
यह घटना वर्षा ऋतु में, यानी श्रावण मास में हुई थी। तभी से इस महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाना अत्यंत शुभ और फलदायक माना जाता है।
ऐसा विश्वास है कि श्रावण में जल अर्पित करने से शिवजी जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनचाहा आशीर्वाद देते हैं।
देवी पार्वती ने भी किया था सावन में व्रत
पौराणिक मान्यता है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए सावन मास में कठोर तपस्या की थी। उनके इसी व्रत के फलस्वरूप शिव-पार्वती का विवाह हुआ।
इसलिए श्रावण के सोमवार को व्रत रखना और शिवजी की पूजा करना विशेष पुण्यदायक माना जाता है। इस दिन शिव-पार्वती विवाह कथा का श्रवण करना भी शुभ होता है।
सिर्फ धार्मिक नहीं, आध्यात्मिक भी है ये महीना
श्रावण मास को केवल पूजा-पाठ के लिए नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण माना गया है।
शिव उपासना, उपवास और सेवा से जीवन में शांति, सुख और समृद्धि आती है। इस महीने प्रकृति में भी परिवर्तन दिखने लगता है — पेड़-पौधे हरियाली से भर जाते हैं और वातावरण भक्तिमय हो उठता है।
भाई-बहन के प्रेम का भी पर्व है सावन
इसी पावन मास में रक्षाबंधन का त्योहार भी आता है, जो भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। ऐसे में सावन का ये महीना सिर्फ ईश्वर की भक्ति का नहीं, बल्कि प्रेम, परिवार और प्रकृति से जुड़ने का भी समय होता है।
प्रकृति की सेवा का भी समय
जैसे भगवान शिव ने विष पीकर संसार की रक्षा की, वैसे ही हमें भी इस मास में प्रकृति की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए।
पेड़ लगाना, जल का संरक्षण करना और पर्यावरण को बचाना — यही इस मास का सच्चा संदेश है।
तो इस श्रावण मास में शिवलिंग पर जल चढ़ाएं, व्रत रखें, कथा सुनें और मन, वचन, कर्म से शिव भक्ति में लीन हो जाएं।
हर वर्ष की भाति इस वर्ष भी उज्जैन महाकाल की चौथी शाही सवारी निकलेगी, जिसमें धार्मिक, ऐतिहासिक और वन्य पर्यटन की सुंदर झलक देखने को मिलेगी।
अधिक जानकारी के लिए देखें:
Ujjain Mahakal: महाकाल की निकलेगी चौथी शाही सवारी, दिखाई देगी धार्मिक, ऐतिहासिक व वन्य पर्यटन की झलक
अगर आप धार्मिक स्थलों में रुचि रखते हैं, तो शिवलिंग या शक्ति केंद्र? जानिए इस मेंढक मंदिर का चौंका देने वाला इतिहास जरूर पढ़ें।
हर-हर महादेव! 🙏